संदेश

जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कोरोना और मानवता

"कोरोना और मानवता"   बरसा रहा है कहर दुनिया पर दुर्भाग्य कोरोना लाया है अपनों ने ही अपनों को दरवाजे पर से हटाया है।   तड़प रहा है दर्द से कोई हम अपनी जान छुड़ाते है क्या पता कोरोना ही हो हम यही सोच सकुचाते है।   जागरूकता अच्छी है पर संवेदनहीन नहीं होना, थोड़े से डर की खातिर तुम अपनी इंसानियत को मत खोना।   अपनी भी तुम जान बचाओ दुसरो की भी ढाल बनो, कुछ और नहीं ज्यादा करना बस एक अच्छे इंसान बनो।   देख हमारा बुलंद हौसला ये ढीठ कोरोना हारेगा सूखे पतझड़ से जीवन में मधुबन पाँव पसारेगा।   दृढ़ कर लो अपनी इच्छाशक्ति बिलकुल निराश नहीं होना दिन में कई बार अपने हाथो को साबुन से धोना।   गमछा, मास्क लगाओगे तो सांस नहीं फूल जाएगी, जब साथ होगा हिन्दोस्तान तो ये महामारी भाग जाएगी।   खिल जाएगी फिर से कलियाँ जन - जन के घर आँगन में मुस्कुराएगी फिर मानवता हर किसी इंसान के मन मे।   सरकार का साथ निभाओ करके पालन सारे नियमो का थोड़े समय की पाबन्दी है फिर लेना मजा घूमने का।   मरने न दो मानवता को अपना धर्म निभाओ त

मै नारी हूँ

नमस्ते दोस्तों, मेरी आज की ये रचना नारी के मजबूत व्यक्तित्व को समर्पित है। नारी एक तरफ तो ममता का सागर है और दूसरी तरफ उसका मजबूत हौसला पत्थर से भी टकरा जाने की क्षमता रखता है।   “ मै नारी हूँ ”   दुनिया ने सारे रीति - रिवाज बस मेरे लिए बनाये हैं, मैंने तो मांगी खुशियां थी पर गम ही मेरे हिस्से आये है।   चंद बचे - खुचे जो सपने थे वो भी गैरो पर वारी हूँ। और बड़े गर्व से कहती हूँ मै नारी हूँ, मै नारी हूँ।।   अबला का मुझको नाम दिया पर सबल नहीं मुझ सा कोई मै पत्थर से भी टकरा जाऊं है प्रबल नहीं मुझ सा कोई।   मै जनम जीवन को देती हूँ करती नौ महीने रखवाली हूँ। और बड़े गर्व से कहती हूँ मै नारी हूँ, मै नारी हूँ।।   तानों ने झुठलाए हरदम मेरी भावना मेरे अर्थ कठोर मर्द समाज मे मेरी ममता हुई है व्यर्थ   जग भूल गया की ढाई अक्षर प्यार की बस मै प्यासी हूँ, मै बड़े गर्व से कहती हूँ मैं नारी हूँ, मै नारी हूँ।।   मै बोझ नहीं हूँ धरती पर ये बात सबको बतला दूंगी, मर्दो को टक्कर दूंगी मैं और अपनी जगह बना लुंगी।   मै कोमल हूँ कमजोर नही

झूठी हंसी

नमस्ते दोस्तों , कई बार हम दुनिया को दिखाने के लिए झूठी हंसी का सहारा लेते है। हम इसलिए हँसते है ताकि कोई हमारे अंदर की उदासी को ना ढूढ़ पाए। हम बाहर से तो खामोश होते है , पर हमारे अंदर दर्द का तूफ़ान उमड़ रहा होता है। कुछ इसी तरह की कश्मकश को बयान करती हुई मेरी ये रचना आप सबको जरूर पसंद आएगी ...........   “झूठी हंसी”   आँखों से तो आंसू बहते है पर होंठो पे हंसी रखती हूँ दुनिया को दिखाने की खातिर चेहरे पे खुशी रखती हूँ।   अब घुट रही हर सांस मेरी मेरी नजरे भी शर्मिंदा है , मेरा दिल है मौत के पहलू में पर जिस्म अभी तक जिन्दा है।   जहाँ कोई शोर नहीं होता मै वो वीरानी बस्ती हूँ। दुनिया को दिखाने की खातिर चेहरे पे खुशी रखती हूँ।।   तेरे शब्दों ने ही कुचल दिए अब स्पंदन के अर्थ , तेरे कर्कश वाक - विलास से मेरे गीत हुए है व्यर्थ।   तेरे कड़वे बोल और तानों से आँखों में नमी रखती हूँ। दुनिया को दिखाने की खा