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आखिर ये किसी की बेटी है

  आखिर ये किसी की बेटी है   कैद हो गया घर में बचपन, ममता सिसक कर रोती है। बुरी नजर ना डालो इस पर, आखिर ये किसी की बेटी है।।   खो -खो, लंगड़ी और कबड्डी, गुड्डा - गुड़िया खेल ये सारे, दूर हो गया अब इनसे बचपन, सूने हो गए सब गली चौबारे।   खिड़की से झांके वो बिटिया, बाहर जाए तो माँ डरती है। बुरी नजर ना डालो इस पर, आखिर ये किसी की बेटी है।।   सावन के अब भी है झूले, मेले आज भी सजते है लेकिन बाहर भेजने में अब, मम्मी - पापा डरते है।   अपने माँ - बाप की गुड़िया हूँ मैं, ये दुनिया कहाँ समझती है। बुरी नजर ना डालो इस पर,   आखिर ये किसी की बेटी है।।   ये हैवान क्या समझेंगे कि, माँ - बाप पर क्या गुजरती है जब उनकी नाजुक, फूल सी लाडो,खून में सनी, दर्द से तड़पती है।   जितना तड़पे वो सोनचिरैया, उतनी मौत माँ मरती है। बुरी नजर ना डालो इस पर, आखिर ये किसी कि बेटी है।।   धन्यवाद सोनिया तिवारी

अमर रहेगा हिन्दोस्तान

"अमर रहेगा हिन्दोस्तान"   थर - थर कांपे धरती, अम्बर, दुश्मन का दिल डोला है, भारत माँ के वीर चले जब, पहन के खाकी चोला है।।   अब क्या रुकना राहों में जब, हाथो में तिरंगा थाम लिया। वीरों ने जब अपना छप्पन इंच का सीना नाप लिया।।   जो बढ़ चले है अब कदम, ये कदम नहीं रुकने देंगे। अब किसी के आगे हम अपने देश को ना झुकने देंगे।।   भारत माँ का नाम रहेगा, जब तक चाँद सितारा है। गूँजेगा कण - कण में नारा, हिन्दोस्तान हमारा है।।   भारत माँ के चरणों में हम अपना शीश चढ़ायेंगे। अमन, चैन की नयी चुनरिया भारत माँ को ओढ़ाएंगे।।   सुन लो चीन और पाकिस्तान जो अब ना होश में आओगे। टकराके फिर भारत से तुम मिट्टी में मिल जाओगे।।   हम अमन पसंद लोग है हम खुद से ना टकराते है। पर आँख फोड़ के हाथ में दे दे जो हमको आँख दिखाते है।।   अमर हमारा देश रहेगा, अमर हमारी माँ भारती है। यहाँ जंग पे जाये सिपाही तो खुद दुल्हन तिलक करती है।।   यहाँ बेटा शहीद हो जाये तो माँ सीना चौड़ा करती है। एक लाल कुर्बान हुआ तो दूसरे को जंग पे भेजती है।।   चारो दिशाओ में भारत माँ का गौरव

पावस

"पावस"     फिर आया पावस मनभावन, संवर गया वसुधा का यौवन। सरस, शीतल बयार चली, झूम रहा है जनजीवन।।   काली, घनघोर घटाएं छायी, धरती ने फिर ली अंगड़ाई। धानी रंग की ओढ़ चुनरिया, बहनो ने कजरी फिर गायी।।   महक उठे फिर बाग़ - बगीचे, चमक उठा हर घर आँगन। पंख फैलाकर, झूम - झूम कर मोर करे सबका अभिवादन।।   नयी - नयी सी लागे वसुधा, चहुँ दिशी छायी हरियाली। हाथो में रचाके मेहँदी शर्माए दुल्हन मतवाली।।   झूम - झूम कर पावस बरसे, बह जाए जन - जीवन के दुःख। नए रंग हो, नयी उमंग हो, नयी दिशा में हर जीव हो उन्मुख।।   लहंगा पहन के ठुमके बिटिया, बांधे भाई को राखी के धागे। सर पर रखकर हाथ बहन के, भाई करे बहन से वादे।।   चहुँ ओर खुशियां लाता पावस, सबके मन को भाता पावस। बुँदे प्यार, मोहब्बत के, घर - घर पर बरसाता पावस।।   धन्यवाद सोनिया तिवारी

बहना कहती है

"बहना कहती है"     फिर से आया है रक्षाबंधन, पर खो गया है अपनापन। बदल गयी है भावनाये, बदल रहा है अब जीवन।।   माँ - बाप नहीं तो मायके में अब प्यार नहीं मिलता, भैया - भाभी के दरवाजे अब सत्कार नहीं मिलता।   तन जाती है भाई की भौहे जब दरवाजे बहना आती है, देख रवैया अपनों का अब आँखे भर - भर आती है।   ये मेरा भी घर था, ये मेरी बचपन मेरी आदत है, पर अब ये लगता है जैसे ये भैया की विरासत है।   दो दिन भी ठहरने का अब तो अधिकार नहीं मिलता। भैया - भाभी के दरवाजे अब प्यार नहीं मिलता।।   क्यों ये लगता है भाई को कि बहना कुछ मांगने आयी है, बहन तो भाई को बचपन की याद दिलाने आयी है।   याद दिलाना है उसको कभी गोदी में खिलाया था, बड़ी बहन होने का मैंने फर्ज निभाया था।   कैसे उसको समझाऊ वो याद अभी तक आता है, मुझे मायके में उसका ये मोह खींच ले जाता है।   भाई - बहन के रिश्ते में ब्यापार नहीं मिलता भाई - भाभी के दरवाजे अब सत्कार नहीं मिलता।।   राखी बांधने से भी अब बहना का मन सकुचाता है, भाई अब इस बंधन को लालच का बंधन बताता है।   कैसे उसको समझ

कोरोना और मानवता

"कोरोना और मानवता"   बरसा रहा है कहर दुनिया पर दुर्भाग्य कोरोना लाया है अपनों ने ही अपनों को दरवाजे पर से हटाया है।   तड़प रहा है दर्द से कोई हम अपनी जान छुड़ाते है क्या पता कोरोना ही हो हम यही सोच सकुचाते है।   जागरूकता अच्छी है पर संवेदनहीन नहीं होना, थोड़े से डर की खातिर तुम अपनी इंसानियत को मत खोना।   अपनी भी तुम जान बचाओ दुसरो की भी ढाल बनो, कुछ और नहीं ज्यादा करना बस एक अच्छे इंसान बनो।   देख हमारा बुलंद हौसला ये ढीठ कोरोना हारेगा सूखे पतझड़ से जीवन में मधुबन पाँव पसारेगा।   दृढ़ कर लो अपनी इच्छाशक्ति बिलकुल निराश नहीं होना दिन में कई बार अपने हाथो को साबुन से धोना।   गमछा, मास्क लगाओगे तो सांस नहीं फूल जाएगी, जब साथ होगा हिन्दोस्तान तो ये महामारी भाग जाएगी।   खिल जाएगी फिर से कलियाँ जन - जन के घर आँगन में मुस्कुराएगी फिर मानवता हर किसी इंसान के मन मे।   सरकार का साथ निभाओ करके पालन सारे नियमो का थोड़े समय की पाबन्दी है फिर लेना मजा घूमने का।   मरने न दो मानवता को अपना धर्म निभाओ त

मै नारी हूँ

नमस्ते दोस्तों, मेरी आज की ये रचना नारी के मजबूत व्यक्तित्व को समर्पित है। नारी एक तरफ तो ममता का सागर है और दूसरी तरफ उसका मजबूत हौसला पत्थर से भी टकरा जाने की क्षमता रखता है।   “ मै नारी हूँ ”   दुनिया ने सारे रीति - रिवाज बस मेरे लिए बनाये हैं, मैंने तो मांगी खुशियां थी पर गम ही मेरे हिस्से आये है।   चंद बचे - खुचे जो सपने थे वो भी गैरो पर वारी हूँ। और बड़े गर्व से कहती हूँ मै नारी हूँ, मै नारी हूँ।।   अबला का मुझको नाम दिया पर सबल नहीं मुझ सा कोई मै पत्थर से भी टकरा जाऊं है प्रबल नहीं मुझ सा कोई।   मै जनम जीवन को देती हूँ करती नौ महीने रखवाली हूँ। और बड़े गर्व से कहती हूँ मै नारी हूँ, मै नारी हूँ।।   तानों ने झुठलाए हरदम मेरी भावना मेरे अर्थ कठोर मर्द समाज मे मेरी ममता हुई है व्यर्थ   जग भूल गया की ढाई अक्षर प्यार की बस मै प्यासी हूँ, मै बड़े गर्व से कहती हूँ मैं नारी हूँ, मै नारी हूँ।।   मै बोझ नहीं हूँ धरती पर ये बात सबको बतला दूंगी, मर्दो को टक्कर दूंगी मैं और अपनी जगह बना लुंगी।   मै कोमल हूँ कमजोर नही

झूठी हंसी

नमस्ते दोस्तों , कई बार हम दुनिया को दिखाने के लिए झूठी हंसी का सहारा लेते है। हम इसलिए हँसते है ताकि कोई हमारे अंदर की उदासी को ना ढूढ़ पाए। हम बाहर से तो खामोश होते है , पर हमारे अंदर दर्द का तूफ़ान उमड़ रहा होता है। कुछ इसी तरह की कश्मकश को बयान करती हुई मेरी ये रचना आप सबको जरूर पसंद आएगी ...........   “झूठी हंसी”   आँखों से तो आंसू बहते है पर होंठो पे हंसी रखती हूँ दुनिया को दिखाने की खातिर चेहरे पे खुशी रखती हूँ।   अब घुट रही हर सांस मेरी मेरी नजरे भी शर्मिंदा है , मेरा दिल है मौत के पहलू में पर जिस्म अभी तक जिन्दा है।   जहाँ कोई शोर नहीं होता मै वो वीरानी बस्ती हूँ। दुनिया को दिखाने की खातिर चेहरे पे खुशी रखती हूँ।।   तेरे शब्दों ने ही कुचल दिए अब स्पंदन के अर्थ , तेरे कर्कश वाक - विलास से मेरे गीत हुए है व्यर्थ।   तेरे कड़वे बोल और तानों से आँखों में नमी रखती हूँ। दुनिया को दिखाने की खा