झूठी हंसी
नमस्ते दोस्तों,
कई बार हम दुनिया को दिखाने के लिए झूठी हंसी का सहारा लेते है। हम इसलिए हँसते है ताकि कोई हमारे अंदर की उदासी को ना ढूढ़ पाए। हम बाहर से तो खामोश होते है, पर हमारे अंदर दर्द का तूफ़ान उमड़ रहा होता है। कुछ इसी तरह की कश्मकश को बयान करती हुई मेरी ये रचना आप सबको जरूर पसंद आएगी...........
“झूठी हंसी”
आँखों से तो आंसू बहते है
पर होंठो पे हंसी रखती हूँ
दुनिया को दिखाने की खातिर
चेहरे पे खुशी रखती हूँ।
अब घुट रही हर सांस मेरी
मेरी नजरे भी शर्मिंदा है,
मेरा दिल है मौत के पहलू में
पर जिस्म अभी तक जिन्दा है।
जहाँ कोई शोर नहीं होता
मै वो वीरानी बस्ती हूँ।
दुनिया को दिखाने की खातिर
चेहरे पे खुशी रखती हूँ।।
तेरे शब्दों ने ही कुचल दिए
अब स्पंदन के अर्थ,
तेरे कर्कश वाक - विलास से
मेरे गीत हुए है व्यर्थ।
तेरे कड़वे बोल और तानों से
आँखों में नमी रखती हूँ।
दुनिया को दिखाने की खातिर
चेहरे पे खुशी रखती हूँ।।
बस एक ही भूल हुई मुझसे
वो है ढाई अक्षर प्यार,
बस इसी भूल ने लूट लिया
मेरा ख्वाब, मेरा संसार।
तुम मुझसे घृणा ही करते रहे
मै प्यार लुटाये बैठी हूँ।
दुनिया को दिखाने की खातिर
चेहरे पे खुशी रखती हूँ।।
धन्यवाद
सोनिया तिवारी
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