आखिर ये किसी की बेटी है
आखिर ये किसी की बेटी है
कैद हो गया घर में बचपन, ममता सिसक कर रोती
है।
बुरी नजर ना डालो इस पर, आखिर ये किसी की
बेटी है।।
खो -खो, लंगड़ी और कबड्डी, गुड्डा - गुड़िया
खेल ये सारे,
दूर हो गया अब इनसे बचपन, सूने हो गए सब गली
चौबारे।
खिड़की से झांके वो बिटिया, बाहर जाए तो माँ
डरती है।
बुरी नजर ना डालो इस पर, आखिर ये किसी की
बेटी है।।
सावन के अब भी है झूले, मेले आज भी सजते है
लेकिन बाहर भेजने में अब, मम्मी - पापा डरते
है।
अपने माँ - बाप की गुड़िया हूँ मैं, ये दुनिया
कहाँ समझती है।
बुरी नजर ना डालो इस पर, आखिर ये किसी की बेटी है।।
ये हैवान क्या समझेंगे कि, माँ - बाप पर क्या
गुजरती है
जब उनकी नाजुक, फूल सी लाडो,खून में सनी,
दर्द से तड़पती है।
जितना तड़पे वो सोनचिरैया, उतनी मौत माँ मरती
है।
बुरी नजर ना डालो इस पर, आखिर ये किसी कि
बेटी है।।
धन्यवाद
सोनिया तिवारी
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