हमने आदर्शो को मार दिया

नमस्ते दोस्तों,

आधुनिकता के इस दौर में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हम अपने नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे है। हमारे अंदर स्वार्थ का शैतान जिन्दा होता जा रहा है, और हमारे जीवन के सच्चे आदर्श मरते जा रहे है। जीवन की इन्ही बुराइयों को आइना दिखाती हुई मेरी ये रचना आप सबको जरूर पसंद आएगी......

 

“हमने आदर्शो को मार दिया”

 

दिन कैसा ये आया है

जिसे कोई समझ न पाया है,

देखो तो हर चेहरे पर बस

वहशीपन ही छाया है।

 

उन रक्त - रंजित लाशों पर

मानवता ने चीत्कार किया।

हां, हमने आदर्शो को मार दिया।

हमने आदर्शो को मार दिया।।

 

रंग गए विदेशी रंगो में अब

कुम्हलाने लगी है तरुणाई,

जब लुटने लगी बहन - बेटी

तब हमको लाज नहीं आयी।

 

ना आयी रत्ती भर हिम्मत

ना ही हमने प्रतिकार किया।

हां, हमने आदर्शो को मार दिया।

हमने आदर्शो को मार दिया।।

 

बनकर रहे अबोध सदा पर

हमने हर मर्यादा लांघी,

लुटता रहा संसार किसी का

पर हमको ना चीख सुनाई दी।

 

बंद कर परस्पर कानों को

अपनी कायरता का प्रमाण दिया।

हां, हमने आदर्शो को मार दिया।

हमने आदर्शो को मार दिया।।

 

रखकर गिरवी अपना जमीर

अपना ही देश लुटवाएँगे

फिर पूछेंगे दुनिया से कि

क्या अच्छे दिन आएंगे?

क्या अच्छे दिन आएंगे ?

 

बन कलियुग का क्रूर कपूत

माँ भारती पर वार किया।

हां, हमने आदर्शो को मार दिया।

हमने आदर्शो को मार दिया।।

 

हम बातें करें मिलावट की पर

क्या अपना दिल असली है,

सूरत से हम भोले है

पर अंतरात्मा कपटी है।

 

अपनी दया, धरम, करुणा का

हमने सौदा सरे - बाज़ार किया।

हां, हमने आदर्शो को मार दिया

हमने आदर्शो को मार दिया।।

 

धन्यवाद,

सोनिया तिवारी

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