मैं भी कवि ना बन जाऊं

नमस्ते दोस्तों,

मैं जब भी शांत होती हूँ तब मेरे मन में नयी - नयी कविता का सृजन होने लगता है।  यूँ तो कवि बनना मेरे लिए गौरव की बात है पर फिर भी कभी - कभी डर लगता है क्युकि एक कवि वही लिखता है जो वो महसूस करता है, मै कभी किसी को आहत ना कर दूँ बस इस बात की घबराहट मुझको होती है।

 

“मैं भी कवि ना बन जाऊं”

 

हर रोज निशा जब आती है

नीरवता आँचल फैलाती है,

पलकें जब मैं झपकाती हूँ

जब भी मै सोना चाहती हूँ

 

तब कई अजीब सवालों में

मै उलझ उलझ रह जाती हूँ

मैं भी कवि ना बन जाऊं,

बस इस बात से मैं घबराती हूँ।

इस बात से मैं घबराती हूँ।।

 

जब भी मैं तनहा होती हूँ

जब  चारो  तरफ  सन्नाटा  है,

तब- तब  शब्दों  का  मायाजाल

मेरे अंतर्मन पर छाता है

 

मैं झट से कलम उठाती हूँ

जीवन के हर एक पहलू पर

मै नयी रचना बनाती हूँ,

मैं भी कवि ना बन जाऊं

बस इस बात से मै घबराती हूँ।

इस बात से ही घबराती हूँ।।

 

मुझे जब तनाव ने घेरा हो

जब चारो तरफ अँधेरा हो,

एकदम शब्दों का हो उजियारा

मानो एक नया सवेरा हो,

 

तब तब उन शब्दों के दम पर

मै नई कविता बनाती हूँ,

मै भी कवि ना बन जाऊं,

इस बात से मै घबराती हूँ।

बस इस बात से मैं घबराती हूँ।।

 

एक सच्चा कवि जो होता है

वो नहीं किसी से डरता है

हर भ्रष्टाचार पर वो खुद के

ज्वलंत विचारो को रखता है,

 

मैं भी वैसी बन जाउंगी,

मैं सत्य छिपा नहीं पाउंगी

बस इसी एक कशमकश से

रातो को मैं गुजरती हूँ,

मैं भी कवि ना बन जाऊं,

बस इस बात से मैं घबराती हूँ।

इस बात से मैं घबराती हूँ।।

 

धन्यवाद,

सोनिया तिवारी


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