मर्यादा

नमस्ते दोस्तों,
वैसे तो हम सब आधुनिकता के दौर में जी रहे हैं,और आधुनिक विचारों की पैरवी करते हैं। पर आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग है जिनके  लिए जाति-धर्म, ऊंच-नीच जैसी भावनाएं सर्वोपरि हैं। हम भूल जाते हैं की हम सब इंसान हैं और हमारा सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है। मेरी आज की कविता समाज द्वारा खींची हुई इसी सीमा - रेखा पर आधारित हैं। चाहकर भी इस सीमा-रेखा को ना पार करके कई लोग अपने प्रेम का बलिदान कर देते है क्यूंकि कहीं ना कहीं वो अपनी मर्यादा निभा रहे होते है............

“मर्यादा”

दर्द तो तुमने बहुत दिया है
मुझको खुशियों के बदले,
तेरी भी तो खुशहाल थी दुनिया,
प्यार मेरा पाने से पहले।
प्यार मेरा पाने से पहले।।

शिक़वा कैसे करुँ मैं तुमसे
जब दोष तुम्हारा था ही नहीं,
मुझसे भी क्या तुम पूछोगे
दोष मेरा भी था ही नहीं।

नहीं शिकायत कोई तुमसे
मेरा भी है दोष नहीं,
प्यार निगाहों से कब छलका
हमको इसका होश नहीं।

हाँ, अकेली सी थी चलती
मैं जीवन की राहों में,
तलाश तुम्हारी भी जारी थी
प्यार मेरा पाने से पहले।
प्यार मेरा पाने से पहले।।

संभव ना हो सकेगा मिलना
क्यूंकि मैंने ये देखा है,
इस समाज ने जाति-धर्म की,
खींची लक्ष्मण-रेखा है।

पार नहीं कर सकती इसको
मेरी भी मर्यादा है,
हम दोनों के बीच हमेशा
एक सामाजिक बाधा है।

विनती बस मैं करुँगी तुमसे
गर तुम इतना कर पाओ,
बंद कर लो सारे दरवाजे,
मेरे आने से पहले।
प्यार मेरा पाने से पहले।
प्यार मेरा पाने से पहले।।

धन्यवाद्।
सोनिया तिवारी  

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