वो बेचारी गईया
नमस्ते दोस्तों,
एक बार
एक दुर्बल और आंशिक रूप से घायल गाय मुझे और मेरे दोस्त को दिखी, वो बहुत ही करुण नजरों
से हम दोनों को देख रही थी। वो भूखी, प्यासी
और बेहद ही कमजोर दिख रही थी। उसे तुरंत हमारे मदद की जरुरत थी, वो ठीक से चल भी नहीं
पा रही थी। किसी ने उस पर बहुत जुल्म किया था। हमने रोज उसे रोटी देना शुरू किया और
अब वो स्वस्थ है। मै आज अपनी इस रचना के माध्यम से आप सबसे अपील करना चाहती हूँ कि
हर जीव पे दया करे और उनकी मदद करे.......
“वो बेचारी गईया”
थी टहल रही मैं सुबह - सुबह
बह रही थी शीतल मंद बयार
खुशनुमा था मौसम बाहर का
थी मेरी सहेली भी मेरे साथ,
दरख्तों के बीच में से थे,
मुझे घूर रहे दो चक्षु निरीह,
हुई बेचैनी हम दोनों को
चले गए हम उसके करीब।
थी दुर्बल, घायल, निरीह वो
अस्थि - पंजर सा उसका तन
रंग था एकदम सफ़ेद उसका
जैसे हो ओढ़े मौत का कफ़न
अन्धकार कि गुहा सरीखी
उन आँखों से हुआ विचलित मन
भरा था उन आँखों में अतिशय दारुण
अपार - दुःख का नीरव रोदन
वो तो एक घायल गईया थी
लिए आँखों में भीषण सूनापन
असंख्य जख्मों की शक्ल में वो
लिए फिर रही थी मानवता की क्रूर निशानी
वो बेजुबान बिन बोले कह गयी
अपनी दर्द भरी कहानी।
हम जैसे ही पास गए तो आँखे उसकी बरस गयी
थोड़ी प्रेम - सुधा पाने को, वो प्यारी गईया तरस गयी
हमने देखा हाल बुरा था, गले में रस्सी और मोटा कुंदा था,
भूखी - प्यासी घायल थी वो, पैरों का भी हाल बुरा था।
हमने जब रोटी खिला दिया, उसकी आशा को जगा दिया
तो रोज सुबह अब हमारे दरवाज़े, उसने खुद को खड़ा किया।
ऐसे तो मनुष्य ने ही है किये उसपे अत्याचार बहुत,
वो फिर भी भरोसा करती है, ये है उसकी कृतज्ञता का सबूत।
है बड़े प्यारे ये बेजुबान, ना करो इन पर अत्याचार
जब दो रोटी ना दे सकते तो, नहीं करो इन पर प्रहार
ये नहीं मांगते जख्म कोई, ना मांगे कोई दवाई है,
बस प्यार भरी एक रोटी लेने, प्यारी गईया आयी है।
बस लिखा हुआ है ग्रंथो में, ना इस कारण करो कुछ भी
वो भी जीवन है, वह भूखी है, बस इस कारण उसे रोटी दो
बन गयी है मेरी साथी वो, अब तुम सब भी साथ निभा देना।
अपने दरवाज़े खड़ी हुई गईया को, थोड़ा प्यार दिखा देना।
थोड़ा भाव दिखा देना, प्यार से रोटी खिला देना।।
धन्यवाद
सोनिया तिवारी
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