मत रोको बेटी को आने से


नमस्कार दोस्तों,
मेरी आज की ये रचना सिर्फ रचना नहीं बल्कि एक सशक्त आवाज है भ्रूण - हत्या के खिलाफ। हमारे समाज में आज भी कहीं - कहीं बेटियों को पैदा होने से पहले ही माँ के कोख में मार दिया जाता है। उस नन्ही सी बच्ची की किलकारी सिर्फ इसलिए नहीं गूंज पाती क्यूंकि वो एक बेटी है। हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात चिंता का विषय बन गया है। हमारे देश में जहाँ एक ओर स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती है, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है। हम सबका यह कर्तव्य है कि हम समाज के दबाव में आकर लड़की और लड़का में फर्क करे। दोनों को समान स्नेह और प्यार दें। इनके साथ किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ होगा। उम्मीद करती हूँ की इस क्रूर मानसिकता  के खिलाफ मेरी ये रचना आप सबको पसंद आएगी ...........

मत रोको बेटी को आने से

माँ, माँ, माँ.......
मैंने आवाज लगायी,
मेरी माँ डर गयी
उसने इधर - उधर देखा, कोई ना था
तब मैंने कहा माँ मैं तो तेरे अंदर हूँ
तुम तो मेरे एक आवाज से डर गयी माँ,
पर मैं तो इस अँधेरे में अकेले
एक तुम्हारे सहारे रहती हूँ।

मुझे भी डर का एहसास होता है माँ
मैं भी छिप जाना चाहती हूँ, तुम्हारे ममता भरे आँचल में,
अपने नन्हे हाथो से स्पर्श करना चाहती हूँ,
तुम्हारी उस खरोंची हुई कोख को,
जिसमे तुमने अपने बच्चे को ओट दिया है।।

मैं देखना चाहती हूँ, उस रंग बिरंगी दुनिया को,
जो अब तक तुम्हारी आँखों से देखती आयी हूँ
मैं देखना चाहती हूँ उस माँ की सूरत को,
मैं जिसकी परछाई हूँ।
मैं दुनिया में आना चाहती हूँ माँ,
अटखेलिया करना चाहती हूँ
तुम्हारी गोद में,
महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारे
कोमल हाथो का एहसास
मुझे तुम दुनिया में लाओगी ना माँ !!

पर मेरी माँ पे कई पहरे थे
उसकी ममता का गला घोंट दिया गया,
नहीं आने दिया मुझे इस दुनिया में,
नहीं छू पायी मैं माँ का आँचल
नहीं बता पायी मैं माँ से की मुझे कितना डर लगा था,
जब तुम्हारे कोख से जबरन निकला था मुझे मैं लहू से  भीग गयी,
मैं डर से काँप रही थी,
लग जाना चाहती थी माँ के सीने से,
पर अब लगता है कि सो जाना अच्छा है,
जब जीने नहीं पायी तो मर जाना अच्छा है।
आखिर मेरा कसूर क्या था ?
क्या मैं एक बेटी हूँ इसलिए मुझे नहीं आने दिया गया,
पर दर्द और डर बेटा - बेटी में भेद नहीं करते,
मुझे भी उतना ही माँ कि जरुरत है जितना बेटे को।।

माँ मुझे लगता है कि अब
कोई ऐसा नहीं करेगा,
मैं तो मर गयी पर अब कोई नहीं मरेगा,
मेरा दर्द जानकर, सब मेरी पीड़ा समझेंगे
बेटी भी जरुरी है इस बात को मानेंगे,
हर कोई खिलने देगा इन कलियों को अब अपने आँगन में,
नहीं पनपने देगा कोई भेद बेटा - बेटी का मन में।
माँ मैं फिर से आउंगी, तुम थोड़ा और ठहर जाओ !!
जख्म हमारे भर जाएंगे, बस तुम तब तक दिल को समझाओ।
माँ तुम तब तक दिल को समझाओ..........अलविदा माँ
मैं फिर आउंगी...........

धन्यवाद,
सोनिया तिवारी

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