पावस

"पावस"

 

 

फिर आया पावस मनभावन, संवर गया वसुधा का यौवन।

सरस, शीतल बयार चली, झूम रहा है जनजीवन।।

 

काली, घनघोर घटाएं छायी, धरती ने फिर ली अंगड़ाई।

धानी रंग की ओढ़ चुनरिया, बहनो ने कजरी फिर गायी।।

 

महक उठे फिर बाग़ - बगीचे, चमक उठा हर घर आँगन।

पंख फैलाकर, झूम - झूम कर मोर करे सबका अभिवादन।।

 

नयी - नयी सी लागे वसुधा, चहुँ दिशी छायी हरियाली।

हाथो में रचाके मेहँदी शर्माए दुल्हन मतवाली।।

 

झूम - झूम कर पावस बरसे, बह जाए जन - जीवन के दुःख।

नए रंग हो, नयी उमंग हो, नयी दिशा में हर जीव हो उन्मुख।।

 

लहंगा पहन के ठुमके बिटिया, बांधे भाई को राखी के धागे।

सर पर रखकर हाथ बहन के, भाई करे बहन से वादे।।

 

चहुँ ओर खुशियां लाता पावस, सबके मन को भाता पावस।

बुँदे प्यार, मोहब्बत के, घर - घर पर बरसाता पावस।।

 

धन्यवाद

सोनिया तिवारी


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